किंतु बुरे विचारों से ग्रसित लूणा पर ऐसे दिव्य विचारों का तनिक भी प्रभाव न हुआ । वह क्रोधाग्नि मे जल उठी । उसने राजा को तथा परिवार के अन्य सदस्यों को यह बात रो रो कर सुनाई कि पूरन मेरे महल में आया था । उसने मुझे बुरी दृष्टि से देखा ओर अपने बुरे बिचार मुझें स्पष्ट रूप से बता दिए । किंतु मुझे ऐसा स्वीकार नही था ।लूणा यह बात सभी को रो-रो कर बता रही थी और पूरन पर झूठा दोष लगा रही थी । उसके नाटकीय अभिनय ने सबकी आंखों पर पट्टी बांध दी । इस पर राजा क्रोधित हो उठा । उसने लूणा के कहने पर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि पूरन का सिर काट कर कुएं में फैक दो । ऐसा ही हुआ । उस प्रिय बच्चे पूरन का माता इच्छरां के अतिरिक्त और कौन सच्चा हमदर्द था ? लूणा ने अपने अपवित्र विचारों के द्वारा सारे वातावरण को दूषित कर दिया ।
जल्लादों ने पूरन को अधमरा करके कुएं मे फेंक दिया । कहते हैं उसमें प्राण शेष थे । कुल मालिक का नाम जपता रहा और अडोल पडा रहा।
अब कोई अधिक चतुर यह कहे कि मनुष्य भोजन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता। उसने बारह बर्ष कैसे काटे होंगे? जी हां ! प्रशन तो आपका उचित हे । किंतु यह बिल्कुल सच है जिसने मालिक के नाम का सहारा ले लिया हो उसे बारह वर्ष तो सारा जीवन भी भोजन की और देखने की आवश्यकता नहीं । यह बहुत उच्च स्तर की बात है । मैंने इसके विषय मेँ कुछ विशेष अनुभव नहीं किया । अत्त: इस बिषय मैं मुझे कुछ और कहने का अधिकार भी नही है। किंतु अपने सच्चे दातार, पीरो-मुर्शिद के वचन मैँने इस सम्बंध में स्वयं सुने है जो कि शत-प्रतिशत सत्य हैं ।
संत वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्मण्ड
यह वास्तविकता है , प्रयोग अर्थात् अभ्यास कोई भी कर सकता है । फिर उसी बिषय पर आते हैं कि पूरन बारह वर्ष कुएं मैं प्रभु की बंदगी करता रहा। एक दिन वहां से एक फकीर गोरखनाथ का गुज़रना हुआ । उसने कुएं के पास जाकर सुना कि किसी की आवाज आ रही है कि मुझे बाहर निकालो । गोरखनाथ ने पूछा कि तुम कौन हो भाई ? कुएं मे से आवाज आई मैं पूरन हूं । गोरखनाथ ने कहा यदि तू पूरन है तो मैं सूत का कच्चा धागा लटकता हू तू इसके सहारे बाहर आ जा । गोरखनाथ ने कुएं में कच्चा धागा लटका दिया । परमात्मा, वाहिगुरु ने अपने बच्चे की लाज रखी । उस कच्चे धागे मेँ लोहे की सुदृढ जंजीर जैसी शक्ति आ गई । जिसको पकड़कर पूरन बाहर आ गया । उसी दिन से उसे ” पूरन भवत्त’ के नाम से पुकारा जाने लगा । बाद में वह एक उच्वक्रोटि का फ़क़ीर बना । कहानी अभी आगे भी है जिसमें बुराई क्रो मुंह क्री खानी पडी अर्थात् सत्य की असत्य पर बिजय हुई हमारे विचारों का सम्बंध इस कथा से यहां तक ही हे । अत: इसे यहां विराम देते हैँ ।
क्योकि हमारा अभिप्राय बुराई करने वालों के गीतों को सुनाना नहीँ अपितु इस कहानी को लिखने का तात्पर्य यह है कि संतों या भक्तों पर निकृष्ट से निकृष्ट दोष लगाए गए । किंतु प्रभु ने उनके आंचल पर किसी प्रकार का दाग लगने नहीं दिया अर्थात् सच्चे परवरदिगार ने उनकी लाज रखी । चाहे दुनिया एक ओर हो गई थी ।
सोचिए ! जब बुराई अच्छाई से चिढ़ती है तब सबकी आँखों पर पट्टी बांध देती है । पर जिन्होंने सत्य का मार्ग अपनाया वे अपने पवित्र आचरण पर सुदुढ़ रहे । इतिहास साक्षी है कि चाहे उन लोगों को मानसिक, शारीरिक यातनाएं दी गई किंतु उनके नाम को कलंकित करने का कोई भी साहस नहीं कर सका । जब तक सूर्य और चांद चमकते रहेंगें उनका नाम सदा संसार के इतिहास के पन्नो (पृष्ठों) पर हीरे की भांति चमकता रहेगा ।
Also Read:- सच को दबाने की हर युग मे नाकाम कोशिश पार्ट-1
बुराई ने प्रत्येक युग में फकीरों पर अपना पूरा एडी-चोटी का जोर लगाया । वह कुछ समय तक सम्बंधित स्थान और वातावरण को थोडा-बहुत प्रभावित कर देती है । परंतु यह अटल सच्चाईं हे कि बुराई कभी स्थिर नहीं रहती और न कभी स्थिर रह सकती है । निंदक और स्वार्थी लोगों का यह काम हे और वे ऐसा हर युग में करते आए और करते रहते है । क्योकि वे सच्चाई सहन नहीं कर सकते, सच्चाई उनके पचती नहीं है और सचाई को
सुनकर वे बौखला जाते है । उनकी दाल तो गलती नहीं । जो अपनी बुरी योजनाओं को सफल बना लें और सच्चाई को सदा के लिए मिटा दें । ऐसा उनसे हो नहीं सकता । एक से एक नईं योजनाएं बनाते है किंतु व्यर्थ हो जाती हैं । सच पहले भी चुप रहा है, आज़ भी मौन है और हमेशा मौन रहता है । झूठा व्यक्ति अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए नए बहाने ढूंढता है । ऊंची आवाज का सहारा लेता है किंतु जिसके पास सच है वह प्रत्येक युग में मुस्कुराता रहता है । उसे किसी से संकोच करने की तथा भयभीत होने की भला क्या आवश्यकता है ।
Continue….