उसकी गली में चाहने वाला नहीं मिला
उसकी गली में चाहने वालो के सर मिले
अपने सतगुर के एक इशारे पर सुनामी लहरों में फंसे लोगो की मदद करने के लिए अपनी जान की परवाह ना करके वहां जाने वाले सेवादारों को देखकर मुझे परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का वह वचन या याद आया। सन 1965 में गांव चुग्घे कला में सत्संग हुआ सत्संग के दौरान यह वचन फरमाए थे कि भाई “किसी समय हजारों ही सिर देने के लिए तैयार रहेंगे।”
पूर्ण संत सतगुरु का कहा हुआ बचन व्यर्थ नहीं जाता ।पत्थर की लकीर तो मिट सकती है सूर्य बर्फ और चांद आग उगल सकता है किंतु पूर्ण फकीर का कहा वचन कभी भी झूठा सिद्ध नहीं हुआ अर्थात न कभी बदला है और न ही कभी बदलेगा। इस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में प्रशासन की अनुशासन हीनता की परिस्थितियों के अनुसार 500 सेवादार मरण-व्रत पर बैठे थे । जब जिम्मेवार भाइयों ने 500 प्रेमियों के मरण-व्रत का पूज्य हजूर पिताजी के समक्ष वर्णन किया तो इस पर शहनशाह जी ने बचन फरमाया “भाई ! अभी तो लाखों और तैयार बैठे हैं ।” अब सोचिए “पूर्ण संतों के वचनों को टाल सके तो कौन टाले? किसी शायर ने लिखा है:-
“वो तो दरिया है उसे अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ा रास्ता हो जाएगा।”
अब बात का दूसरा पहलू लेते हैं कि क्या सतगुरु किसी के बलिदान का भूखा होता है नहीं का कदापि भी नहीं । पूर्ण सतगुरु तो सत्या का पुंज होता है । कुल मालिक “सच” है, शब्द का स्वरूप सत्य की बात करता है जो जीव झूठ में उलझते हैं उन्हें ‘सत्य’ पर चलने की प्रेरणा देता है एवम वो सबको अहिंसा का पाठ पढ़ाता है वे यह भी प्रेरणा देता है कि सब का भला करो , भला सोचो बल्कि जो कोई आपका बुरा करना चाहता है, आप उसका भी भला करो । अंहकार का त्याग करो पर अपने स्वीभिमान को कायम रखो अर्थात अपने प्राणों पर खेलकर असहाय और लाचार जीवों की सहायता करो ।
इतिहास साक्षी है कि सच की आवाज को दबाने वाले लोगों का मुंह बंद करने के लिए पूर्ण संत फकीरों ने स्वयं का तथा परिवार का बलिदान दिया । क्या वह इस दर्दनाक कहर को रोक नहीं सकते थे? बिल्कुल रोक सकते थे । परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया । वो आनेवाले इतिहास को बताना चाहते थे के अहिंसा ही परम धर्म है अपने शरीर पर कष्टों को सहन कर अथवा मौत को गले लगाया । यदि मानवता का भला हो सकता है तो इससे बड़ी भक्ति और क्या हो सकती है उन्होंने वही किया जो उनकी राजा तथा खुशी थी। क्योंकि पूर्ण संतों की रजा परम पिता परमात्मा की सोच में राई भर भी अंतर नहीं होता वास्तव में खुदा संतों की जुबान से बोलता है क्योंकि खुदा का कोई स्थाई रूप नहीं होता जिसके कारण वह पूर्ण सतगुरु के शब्द देह स्वरूप द्वारा प्रत्यक्ष रूप में इस संसार में आता है ।
जिन्होंने अपनी मुर्शिद कामिल के हुक्म में मानवता के लिए अपने रक्त का एक-एक कतरा बहा दिया । मानवता की सेवा के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दे डाली वे परवाने अपना नाम सदा के लिए दुनिया में अमर कर गए । सृष्टियां बदल जाएंगी और सूरज भी एक दिन ठंडा हो जाएगा । कोई पता नहीं कि कौन यहां आया और कब चला गया अनगिणत आए और अनगिणत चले गए । अधिक से अधिक गुमनाम इस दुनिया में आए और गुमनाम ही चले गए लेकिन जिन्होंने अपनी प्रियतम सच्चे सतगुरु के हुक्म में रहकर मानवता की सेवा में अपना तन मन धन सब कुछ लगा दिया तथा मुर्शिद की खुशी में ही अपनी खुशी समझी ऐसे परवाने उस शब्द-स्वरूप असीम ताकत के दिल में सदा धड़कन की तरह धड़कते रहेंगे । जिनको उस सतगुरु ने किसी बहाने कोई विशेष खुशी देनी होती है उनको ही वह अपनी तवज्जो द्वारा सुनता है उन परवानों को ही दुखी एवं पीड़ित लोगों की सेवा सम्भाल का अवसर प्रदान करता है । नहीं तो आज के समय में कोई भी किसी को अपने शरीर का बाल तक नहीं देता , किसी के लिए कोई कांटे जितनी पीड़ा सहन नहीं कर सकता । उस सुप्रीम पावर सच्चे मुर्शिद- कामिल के लिए यह कोई विशेष बात नहीं थी कि वह गुजरात में आए भूकम्प को रोक देता अथवा सुनामी लहरों को चलने से पहले ही शांत कर देता । सब उस के हुकम में हो रहा है, हुकम से बाहर कुछ भी नहीं । किसी ने बड़े प्रभावी अंदाज में कहा है :-
“खुदा की खुदाई में हर शू अमल है,
जरूरी ना होता तो हरगिज़ ना होता ।”