पारस परसीए लोहा कंचन होय पार्ट -३

तुम भूला दो हमारी यादों को,
हम तो दिल से जुदा नहीं करते।

फकीर ने कहा, भाई! राह में तुझे अगर कोई अजीब क्रिया होती दिखे तो हमें एक बार आकर जरूर बताना। शिष्य ने कहा ठीक है जी। वह अपने गाँव की तरफ चल पड़ा। चार-पांच घंटों के पैदल सफर के बाद वह कुछ देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे जाकर लेट गया। उसको लेटे अभी कुछ समय ही हुआ था कि पेड़ की एक टहनी पर एक कौआ आकर बैठ गया। शिष्य को नींद आ रही थी। पर उसी समय कौए ने कांव-कांव का शोर करना शुरू कर दिया। शिष्य की आँख खुली और उसने ऊपर की तरफ नज़र करके कौए को देखा तो कुदरती उसी समय कौआ नीचे आ गिरा। शिष्य बड़ा हैरान हुआ। उसने कौए को उठाकर देखा तो वह मर चुका था। शिष्य सोच में पड़ गया।

वह वापिस अपने गुरू जी की तरफ चल पड़ा और पहुँच कर सारी कहानी सुनाई। गुरू जी तो पूर्ण फकीर थे और सब जानते थे, मुस्करा कर कहने लगे, ठीक है भाई, जो होना था हो गया। अब तो दिन छिपने वाला है, कल को चले जाना। शिष्य ने कहा ठीक है जी। अगले दिन उस शिष्य ने अपने गाँव की राह ली। कुछ सफर करके वह आराम करने के लिए फिर वहीं कल वाले पेड़ के नीचे जाकर लेट गया। कुछ समय आराम करने के बाद मनोवैज्ञानिक तौर पर ही उसकी नजर उसी टहनी पर चली गई। अब उस टहनी पर एक बहुत ही सुंदर हंस बैठा कलोलें कर रहा था। पर अचानक वह भी नीचे आ गिरा। शिष्य ने उसे उठाकर देखा तो वह भी मर चुका था। शिष्य को बड़ी हैरानी और दु:ख भी हुआ कि मैं इतने बुरे कर्मों वाला हूँ कि टहनी पर बैठे जिस पक्षी पर मेरी नज़र जाती है वही मर जाता है।

भगवान ने मुझे संतों के पास इतने साल रहने का यही फल दिया है। लेकिन वह उसी समय वापिस संतों (अपने गुरू जी) की तरफ चल पड़ा। जाकर सारी बात बताई। संत इस बार भी मुस्करा पड़े और वचन किया, कोई बात नहीं बेटा! तू अब थक गया होगा, आराम कर ले। अगले दिन फकीर ने उसे कहा, भाई! अपने देश के राजा के घर कई वर्षों के बाद राजकुमार पैदा हुआ है। तू उस नन्‍हें बच्चे के साथ कोई बातचीत करके आ। शिष्य ने सोचा कि गुरू जी मेरे से नाराज़ हैं और मुझे मरवाना चाहते हैं। क्योंकि मैंने कौए को देखा वह मर गया, हंस को देखा तो वह मर गया, अगर बादशाह का बेटा मेरे देखने से मर गया तो मेरे बचने की कहां जगह है? फकीर समझ गया कि शिष्य क्या सोच रहा है। उन्होंने कहा, भाई तू डर ना, हम तुझे जो कह रहे हैं, तुझे कोई नहीं रोकेगा, तू जा। दुविधा में पड़े शिष्य ने राजा के महलों की तरफ मुँह किया और चल पड़ा। सब खेल पूर्ण फकीर की रजा में था। महलों की तरफ जाते शिष्य को किसी पहरेदार ने नहीं रोका। आगे पहुँचकर राजा से मलाकात हई। शिष्य ने बताया कि मैं अमुक फकीर का शिष्य हूं। इतना सुनकर राजा ने शिष्य का बहुत इज्जत-सत्कार किया।

फिर शिष्य ने कहा कि मुझे मेरे सतगुरु ने आपके नव-जात बेटे से कोई बातचीत करके आने के लिए कहा है। राजा ने कहा कि ठीक है। आप जरूर बातचीत करो, बच्चा सामने पालने में लेटा है। जब शिष्य ने बच्चे के पास जाकर उसकी तरफ एक टक देखा तो सोए पड़े बच्चे ने एकदम आँखें खोली, जैसे वह शिष्य का ही इंतजार कर रहा था। बच्चा शिष्य को देखकर ऊँची-ऊँची हँसने लगा। शिष्य उस नन्हें बालक को इस तरह हँसता देखकर हैरान हो गया। पर उससे भी ज्यादा तब हैरान हुआ जब बच्चा बोलने लगा। उसने कहा, आ गये पूर्ण गुरू का शिष्य! तू क्या सोचता था कि तू इतने साल संतों के पास रहा और तुझे कोई फायदा नहीं हुआ। तू तो बहुत बड़े भुलेखे में फिर रहा है। मैं पहले एक कौए की जूनी में था, तेरी नज़र मेरे पर पड़ी तो मुझे कौए की जूनी से मुक्ति मिली। फिर मैं उससे बढ़िया जूनी में आया, हंस बन गया। फिर तेरी दृष्टि मेरे पर पड़ी, तो मैंने उस जूनि से भी निजात हासिल की और सीधा राजा के घर राजकुमार के रूप में जन्म लिया है सिर्फ और सिर्फ तेरे देखने से। सिर्फ तेरे देखने मात्र से ही मैं कहां से आज कहां पहुँच गया हूँ। तूं धन्य है और तेरा मुर्शिद-कामिल भी। जिसकी दया-मेहर से तेरी दृष्टि में ऐसी उच्चता भरपूर रूहानी ऊर्जा है । सिर्फ तेरे देखने से मैं यहां तक पहुंच गया हूँ तो अगर तेरा मुर्शिदे-कामिल मेरे ऊपर एक पल के लिए भी दृष्टि डाल दे तो पता नहीं मैं कहाँ से कहाँ पहुँच जाऊँ। तू इतने साल उनके पास रहकर भी यह सोचता है कि तुझे क्या मिला?

बच्चे की उपरोक्त बात सुनकर शिष्य शर्म से पानी-पानी हो गया। वह वहां से सीधा अपने सतगुरु के पास पहुंचा। आंखें बिना रुके आसूं बहा रही थी, सिर को चरणों से ऊपर उठाने की शरीर में हिम्मत ही नहीं रही थी। परंतु पूर्ण फकीर तो सब जानते ही हैं। वह सब के पर्दे ढकता है, रहम दिल होता है। उन्होंने कहा कोई बात नहीं बेटा, जो हो गया सो हो गया, आगे से मन से सावधान रहना। बस फिर क्या था! आसुंओं से पक्की यारी गाँठ ली और हर समय गुरू गुरू करने की आदत डाल ली। मुर्शिंद में सबकुछ ही नज़र आया तथा बाकी सब भूल गया। किसी शायर ने खूब लिखा है:- देखकर हैरान हो गया। पर उससे भी ज्यादा तब हैरान हुआ जब बच्चा बोलने लगा। उसने कहा, आ गये पूर्ण गुरू का शिष्य! तू क्या सोचता था कि तू इतने साल संतों के पास रहा और तुझे कोई फायदा नहीं हुआ। तू तो बहुत बड़े भुलेखे में फिर रहा है। मैं पहले एक कौए की जूनी में था, तेरी नज़र मेरे पर पड़ी तो मुझे कौए की जूनी से मुक्ति मिली। फिर मैं उससे बढ़िया जूनी में आया, हंस बन गया। फिर तेरी दृष्टि मेरे पर पड़ी, तो मैंने उस जूनि से भी निजात हासिल की और सीधा राजा के घर राजकुमार के रूप में जन्म लिया है सिर्फ और सिर्फ तेरे देखने से। सिर्फ तेरे देखने मात्र से ही मैं कहां से आज कहां पहुँच गया हूँ। तू धन्य है और तेरा मुर्शिद-कामिल भी। जिसकी दया-मेहर से तेरी दृष्टि में ऐसी उच्चता भरपूर रूहानी ऊर्जा है ।

सिर्फ तेरे देखने से मैं यहां तक पहुंच गया हूँ तो अगर तेरा मुर्शिद-कामिल मेरे ऊपर एक पल के लिए भी दृष्टि डाल दे तो पता नहीं मैं कहाँ से कहाँ पहुँच जाऊँ। तू इतने साल उनके पास रहकर भी यह सोचता है कि तुझे क्या मिला? बच्चे की उपरोक्त बात सुनकर शिष्य शर्म से पानी-पानी हो
गया। वह वहां से सीधा अपने सतगुरु के पास पहुंचा। आंखें बिना रुके आसूं बहा रही थी, सिर को चरणों से ऊपर उठाने की शरीर में हिम्मत ही नहीं रही थी। परंतु पूर्ण फकीर तो सब जानते ही हैं। वह सब के पर्दे ढ़कता है, रहम दिल होता है। उन्होंने कहा कोई बात नहीं बेटा, जो हो गया सो हो गया, आगे से मन से सावधान रहना। बस फिर कया था! आसुंओं से पक्की यारी गाँठ ली और हर समय गुरू गुरू करने की आदत डाल ली। मुर्शिद में से सब कुछ ही नजर आया तथा बाकी सब भूल गया। किसी शायर ने लिखा है:-

जब रुख-ए-परनूर का जलवा नजर आया, काबा ना नजर
आया, कलीसा ना नजर आया।

परंतु जो कुछ महसूस करके भी ना समझे तो उसके बारे में क्या कहा जाए! क्योंकि सतगुरु को मानने वालों में से बहुत से मुरीद ऐसी ही प्रवृति के ही होते हैं। सतगुरु ऐसे परवानों को अंदरूनी संवेदनाशीलता बख्शे।

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