कुछ लोग थे कि वक्त के सांचे में ढल गये,
कुछ लोग थे कि वक्त के सांचे बदल गये।
आत्मा तथा रूह क्या चेतन वस्तु है? एक बार उपरीक्त प्रश्न किसी व्यक्ति ने किसी फकीर से पूछा। उसने यह भी पूछा कि यदि आत्मा चेतन है तो इसका स्पष्टीकरण किया जाए। अगर नहीं तो क्यों आत्मा-परमात्मा की सदा रट लगाए रहते हो? इस प्रश्न का दिया जाने वाला उत्तर चाहे हां में तो था परन्तु केवल हां’ मात्र से प्रश्नकर्ता की संतुष्टि करवा देने से उस प्रश्नकर्ता को आत्मा की यथार्थता के प्रति अपना एक भिन्न दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए सहायक होना था। सम्भव है कि वह परमात्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करके सृष्टि की रचना सम्बन्धी अपने मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न विचार उत्पन्न करता। जैसे कि कहा जाता है कि आठ मिलियन पूर्व वानर से मनुष्य बना था वास्तव में सत्य और है। इस आधार पर फकीर द्वारा दिया जाने वाला उत्तर प्रश्नकर्ता की सोच को गलत अथवा सही स्थिति की ओर ले जाने वाला एक माध्यम बन जाना था। आत्मा का रूप सूक्ष्म है अर्थात् आत्मा को देखा नहीं जा सकता किन्तु यह भी निश्चित है कि आत्मा-चेतन है। केवल इतना ही नहीं यदि गहरी दृष्टि से विचार करें तो ‘आत्मा’ सृष्टि का मूल आधार है एवम् आधार उत्पन्न करने वाली सुप्रीम पॉवर वह राम, अल्लाह, गॉड है।
फकीर ने उत्तर दिया विश्व में विचरते सभी प्राणियों का महत्व उनके चलने, फिरने, बोलने तथा उनके द्वारा प्राप्त होने वाले लाभ के कारण है। जब भी कभी कोई जीव मर जाता है तो उसका महत्व शून्य हो जाता है। आप तनिक सोचें कि उसमें एक क्षण पहले क्या था जिसके द्वारा हम उससे हँसते तथा खेलते थे और उसके शरीर से ऐसी क्या वस्त चली गई जिसके पास अब हम बैठ कर असुविधा अनुभव करते हैं। उस जीव का शरीर तो वही है, वही उसके वस्त्र हैं, वही उसका पहले वाला रंग-रूप है। फिर ऐसी अदृश्य वस्तु क्या थी जो एक क्षण पहले की प्रसन्नता, मधुरता तथा आनन्द अपने साथ ले गई? क्या वह आत्मा अथवा रूह तो नहीं थी? हां! वह आत्म अथवा रूह ही थी। आत्मा वह शक्ति जो हमें परस्पर वार्तालाप करवा रही थी। एक दूसरे से प्रेम करने के लिए आकर्षित कर रही थी। क्या आप सोचते हो कि हडिडयों और मांस क ः# बना ढांचा अपने आप में हरकत करता है? उदाहरणार्थ मृतक शरीर पर तलवार से आक्रमण करो, उसको कोई दर्द अनुभव होगा, कोई रोने की आवाज आएगी? अर्थात नहीं आएगी। अब जीवित प्राणी पर ऐसा प्रहार करो उसी समय हाहाकार मच जाएगा। वह जीव दर्द से तड़फ कर भय युक्त स्थिति उत्पन्न कर देगा। यह ‘आत्मा’ ही तो थी जिसने दर्द का अनुभव करवाया। क्या कोई निर्जीव वस्तु अर्थात अचेतन पदार्थ ईंट, लकड़ी तथा लोहा दु:ख दर्द का अनुभव करा सकते हैं? नहीं। वह स्वयं ही दुःख-दर्द को अनुभव नहीं कर सकते? दूसरों क 🙂 भला दुःख-दर्द का अहसास कैसे करवा देंगे? इस प्रकार जो वस्तु (रूह) एक मुर्दे शरीर में प्रवेश करके उसको चेतन (जीता-जागता) बना सकती है तो आत्मा के विषय में ऐसा प्रश्न करना कि आत्मा चेतन है अथवा नहीं क्या अज्ञानता युक्त एवं हास्यप्रद नहीं लगता? यदि अब भी आपकी सन्तुष्टि नहीं होती तो इसका सीधा सा अर्थ है कि आप चेतन क ‘” वास्तविक रूप कुछ और समझते हैं।
‘आत्मा’ के कारण ही सृष्टि अस्तित्व में आई और आज भी अपने अस्तित्व को स्थापित किए हुए है। वास्तव में उपरोक्त प्रश्नकर्ता ‘आत्मा’ के विकास की सोच को अपने अन्दर विकसित ही नहीं होने देते। जिस कारण से वह जो ब्रह्मण्डे, सोई पिंडे जो खोजे सो पावै वाले तथ्य को व्यर्थ के वाद-विवाद एवम मौखिक ज्ञान द्वारा समझना तथा समाधान करना चाहते हैं। जबकि इस तथ्य को समझने के लिए आत्मा को विकास के मार्ग पर ले जाना प्राथमिक एवं आवश्यक कार्य है। तर्क-वितर्क, वाद-विवाद एवं ज्ञान वास्तविकता की तुष्टि न करवाने के कारण ‘आत्मा’ के सम्बन्ध में अक्रोश उत्पन्न कर देते हं:ः। जिसके कारण ऐसे लोग प्रश्नकर्ताओं में सम्मिलित हो जाते हैं। ऐसे प्रश्न अपने मस्तिष्क में बिठा लेते हैं और सारा जीवन वास्तविकता से नभिज्ञ होकर गुजार कर चले जाते हैं। पंजाबी के प्रसद्धि लेखक प्रिंसिपल निरंजन सिंह ने अपनी पुस्तक धर्म तथा विज्ञान में लिखा है कि अन्तर आप बाहर भी ओही, कला धार जिन सगली मोही।। यह संसार एक ही ज्योति का पसारा है। अन्दर भी वही, बाहर भी वही, सूक्ष्म भी वही और स्थूल भी वही, मन भी वही, शरीर भी वही, ज्योति भी वही,मादा भी वही। भिन्नता केवल चेतन (सूरत) के विकास की है।’
हमारा यहां उपरोक्त विचारों का अंकित करना सृष्टि के मूल रूप आत्मा की सर्वोच्चता को प्रदर्शित करना है क्योंकि रूहानियत का सम्बन्ध आत्मा और उसके कार्य से है। आत्मा का उस मालिक-खुदा के साथ सम्बन्ध इस प्रकार है जैसे सूर्य से निकली किरणों का सूर्य से है। आत्मा का मालिक के नूरी स्वरूप में समा जाना उसके विकास का अन्तिम छोर होता है। अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि उस आत्मा को मालिक के साथ मिलाने का माध्यम कौन सा हो सकता है? प्रत्येक धर्म के महापुरुषों का सामूहिक अनुभव है कि रूह को मालिक साथ मिलाने का माध्यम कोई ऐसा पूर्ण कामिल फकीर जो न्यारे राम से पूर्ण रूप से मिल चुका हो जो ‘ऐनल हक’ शब्द का प्रयोग सम्पूर्ण रूप से करने का वास्तविक अधिकारी हो। जिसके दर्शन क रने से चुम्बकीय आकर्षण हो। जिसकी एक मुस्कराहट आत्मा को आकर्षित कर ले। जिसका रूहानी चेहरा इन्सान के सब प्रश्नों का उत्तर हो। जिसके आगे नतमस्तक होने की आवश्यकता न हो, बल्कि सिर अपने आप झुक जाए। जिसे सच्चा सतगुरु मान लेने पर क्यों, किन्तु की गुंजाइश शेष न रहे। ऐसा सच्चा सतगुरु जिसक ‘े एक झलक की भी दुनिया में किसी से तुलना करना आत्मा क थे असहनीय दर्द अनुभव कराने से कम नहीं है। जिसके विषय में परम पूजनीय सच्चे मुर्शिद सन्त गुरमीत राम रहिम सिंह जी इन्सां अपनी कव्वाली में इस प्रकार फरमाते
दिल करें कुर्बा, करूं जां नूरे नजर पे
लाखों जानें कुर्बान दाता जी, तेरी एक झलक पे।।