‘जदों अमलां दे वल तकदा हां, दिल डरदा है, जिंद सुकदी है।
मेरे दिलबर,मुर्शिद, यार,खुदा, गल तेरे करम ते मुकदी है।
उपरोक्त पंक्तियाँ जो किसी ने सच्चे मुर्शिद के विषय में लिखी हैं, में एक ऐसी सूक्ष्म एवं प्रत्यक्ष सच्चाई का मिला हुआ रूप झलकता है, जोकि मुर्शिद के प्रति सत्कार को भय से मिश्रित घुले हुए वैराग्यमयी अन्दाज में प्रस्तुत करता है। मुर्शिद का वास्तविक एवम् सच्चा सत्कार केवल लेखनी अथवा जिद्ना द्वारा वर्णित नहीं हो सकता, प्रत्युत सच्चा सत्कार तो उनके मुबारके मुखारबिन्द से निकले हुए एक-एक शब्द को सोच समझ कर अमल में लाने का नाम है। मुर्शिद के सत्कार एवम् उसकी हस्ती की तुलना किसी अन्य के साथ न करने के विषय में अनेकों ग्रन्थों में असीमित सर्वोच्च शीर्षक अंकित हैं।
वास्तव में सच्चे मुशिदे-कामिल एक ऐसी असीम शक्ति एवम् महान हस्ती का नाम है जोकि परमार्थ के पुन्ज होने के साथ-साथ साधारण मनुष्य में उसके अन्त:करण में छुपी हुई असीम एवं आश्चर्यजनक शक्तियों को जाग्रत करने के लिए केवल प्रेरित ही नहीं करता बल्कि जाग्रत करवाने की शक्ति का भण्डार है। कहते हैं कि इन्सान अपनी सारी आयु में दिमाग के कुछ ही भाग को प्रयोग में लाता है। दिमाग का शेष भाग वैसे का वैसा पड़ा रहता है। यह बात एक हिसाब से तो ठीक भी लगती है परन्तु अन्य दिष्टकोण से देखें तो आज के स्वार्थी एवं ‘मैं’ प्रधान युग में ऐसा कौन इन्सान होगा जो किसी कार्य हेतु अथवा किसी बात को सोचते समय कम दिमाग का प्रयोग करता होगा? शायद ही होगा, नहीं तो प्रत्येक इन्सान एक ही सोच को सोचते समय कुछ क्षण में अनेक बातें जो उसे उचित अनुचित ढंग से लाभ पुहंचाने वाली होती हैं, सोच लेता है। इस हिसाब से उपरोक्त तथ्य अनुचित बैठता है कि इन्सान अपने दिमाग का कुछ भाग प्रयोग में लाता है पर पूर्व कही बात भी बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है। फिर वास्तविकता क्या है? वास्तव में सत्य यह है कि इन्सान के अन्त:करण में छुपी हुई आश्वर्यजनक शक्तियों के प्रक ट होने से अथवा उभरने के बिना इन्सानी दिमाग अपनी एक विशेष पूर्णतय: की स्थिति में आ ही नहीं सकता। जिसके कारण वह अपने अलग दायरे में रहता हुआ ऐसी सोचें, कठिनाइयों अथवा समस्याओं के विषय में अति सार्थक एवं सरल समाधान ढूँढने में असमर्थ रहता है। जिसके विषय में सोचकर केवल आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि विश्वास करना भी कठिन हो जाता है। जैसे कि डेरा सच्चा सौदा में सच्चे मुर्शिद परम पूजनीय हजूर महाराज संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार मेहर द्वारा अनेकों कठिन कार्य अत्यंत कम समय में, कम धन में ,कम इन्सानी शक्ति के द्वारा पूर्ण कर लिये जाते हैं। जिसके विषय में साधारणतय: लोग बिना देखे विश्वास ही नहीं करते। चाहे उन्हें कितना भी क्यों न समझाया जाए? यह एक अटल सच्चाई है। जब कोई व्यक्ति वास्तव में अपने अन्दर छुपी शक्तियों को प्रकट कर लेता है तो उस पर यह बात लागू नहीं होती कि इन्सान दिमाग का कुछ ही भाग प्रयोग में लाता है। ऐसे इन्सान का मस्तिष्क सचमुच ही अपनी पूर्णतय: स्थिति में होता हुआ ऐसी सोच सोचता है अथवा विचार उत्पन्न करता है कि अन्य लोगों के मस्तिष्क उसके दृष्टिकोण अथवा सोच व विधि से प्रभावित होकर कई बार पागलपन की स्थिति में आ जाते हैं।
जैसे कि पहले बताया जा चुका है कि इन्सान की आन्तरिक शक्तियों को जागृत करने की सामर्था केवल सच्चा रूहानी सन्त अथवा पूर्ण मुर्शिद ही रखता है। जो स्वयं अपने आन्तरिक हृदय में उन शक्तियों को जो पहले से ही जागृत होती हैं, उन्हें परोपकार के लिए प्रयोग में लाते हैं तथा वे साधारण लोगों में उन शक्तियों को जागृत करने की क्षमता रखते हैं अर्थात् वे पूर्ण सामर्थ होते हैं। जो अपनी दया दृष्टि द्वारा व्यक्ति में ऐसे दिव्य गुणों को अंकु रित कर देते हैं जिसके द्वारा छपी हुई आन्तरिक शक्तियों क शत जागृत करने में बल मिलता है अर्थात् ऐसे सच्चे मुर्शिद के निर्देशों पर चलता हुआ शिष्य उन दिव्य गुणों में परिपक्वता लाता हुआ आन्तरिक उन्नति की ओर अग्रसर होता चला जाता है। एवम् उस स्थिति को भी पार कर जाता है, जिसको इन्सानी दिमाग की पूर्णता की ओर अग्रसर होने वाली क्रिया करती हुई स्थिति का नाम दिया जाता है। चाहे रूहानी फकीरों का ‘ध्येय’ दिमाग की पुर्णतया में क्रिया करने की स्थिति तक पहुँचने के लिए प्रेरित करना नहीं होता प्रत्युत उनका वास्तविक उद्देश्य अथवा संसार में आने का कारण उस असीम एवं अडोल शक्ति के साथ मिलकर एक हो जाना और अन्य क श भी उसके साथ मिलाने का होता है। जिसको आधुनिक युग में Supreme Power (सर्वशक्तिशाली) का नाम दिया गया है। इस उद्देश्य की ओर अग्रसर होना, दिमाग की पूर्णत: जैसी स्थितियाँ आरम्भिक अवस्था में आ जाती हैं। जबिक उस लक्ष्य तक पहुँचते समय इससे भी अधिक बहुत कुछ अनुभव होता है। जिसके विषय में रूहानी सनन््तों ने अपने अनुभवों द्वारा बहुत कुछ बताया है। इस निबंध में विचारों का प्रवाह किसी और दिशा में है। अतः उपरोक्त बात को यहां समाप्त करना आवश्यक है।
हम बात कर रहे थे, मनुष्य के दिमाग को पूर्णतय: की क्रिया करते हुए उस स्थिति तक ले जाने की अथवा उससे भी आगे ले जाने के लिए ऐसी युक्ति की जिसके द्वारा हम इस सम्बन्धित लक्ष्य तक पहुँच सकें। दूसरे अर्थों में सच्चे मनोचिक्तिसिक वही हैं जो अपनी कोशिश ईलाज अथवा औषधि द्वारा इन्नसानी दिमाग को उस स्थिति की ओर ले जाएं। संसार में जिसके विषय में केवल तर्क-वितर्क किये जाते हैं।
पूर्ण मुर्शिद आदिक ःल से जलते आ रहे दीपक के समान होता है जिसके द्वारा वह अपनी जल रही ठण्डी एवं रूहानी ज्योति से अनेको ज्योति विहीन दीपकों को प्रज्जवलित कर देता है। यहां पर सच्चे रूहानी मुर्शिद के विषय में एक बात बताना आवश्यक है, जैसे कि एक ज्योति विहीन दीपक प्रज्जवलित होने के पश्चात् अन्य दीपकों को प्रकाशित कर देता है और वे दीपक आगे अनेकों दीपकों को प्रज्जवलित कर देता है। किन्तु यह उदाहरण मुर्शिद एवं शिष्य के सम्बंध में उचित नहीं है। अर्थात इसके विपरीत है भाव शिष्य अपने मुर्शिद से वह विशेष यःशक्ति अथवा विधि प्राप्त करके दूसरे को बता नहीं सकता, चाहे उस विधि द्वारा वह कितना भी लाभ क्यों न प्राप्त कर चुका हो। यदि वह शिष्य ऐसा करता है तो विधि पूछने वाले व्यक्ति को तो क्या लाभ होना था अपितु बताने वाले शिष्य में उभर चुकी असीम एवं विचित्र शक्तियाँ इस प्रकार अपना रूप बदल लेती हंः कि उसका दिमाग साधारण मनुष्य के दिमाग से भी निम्न स्तर का हो जाता है। ऐसा इन्सान एक चलती फिरती लाश के समान नजर आता है। जिसके अंगों में गति तो है पर दुनिया से बेसुध होता है। अन्य प्रत्येक रोग का उपचार है परन्तु ऐसे विचित्र रोग का समाधान कभी भी नहीं हो सकता क्योंकि विश्व के समस्त धर्मों के ग्रन्थों, शास्त्रों एवं रूहानी महापुरुषों के अनुभवों का सारांश है कि विश्व में प्रत्येक छोटी-बड़ी वस्तु की तुलना हो सकती है। लेकिन सच्चे मुर्शिद की तुलना नहीं हो सकती। उसके तुल्य कौन हो सकता? इस विषय में सोचना भी महामूर्खता है। पूर्ण सच्चे मुर्शिद की शक्ति की विशालता का अनुमान भी लगाया नहीं जा सकता क्योंकि पूर्ण मुर्शिद वही होता है जो परिपूर्ण हो चुका हो। उसका विस्तार ,प्रवाह, सोच तथा दायरा की की तरह होता है जिसका कोई किनारा नहीं ता।</div>
1 Comment
Archna insa
(May 4, 2020 - 8:35 am)बहुत खूब, खूबसूरत विचार